Positive Thinking की वास्तविकता क्या है?

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[Note:- इस लेख में दिए गए विचार हमारे है। हमने इस लेख को काफी अनुसंधान करके लिखा है। लेकिन आप भी इस लेख पर अनुसंधान करें, और जो बातें सच है, उसको ही फोलो करें। 

दोस्तों आज हम बात करने वाले हैं, उन पर जिन्हें लोग "सकारात्मक सोच"(Positive thinking) कहते हैं।



यह सोच को समझने में बहुत ज्यादातर 
लोग असफल रहते हैं। ज्यादातर लोग किसे "सकारात्मक सोच" समझते हैं?


  • ज्यादातर लोग- हर विचारों में हकार(Positiveness) हो और कम से कम "नकार"(Negativeness) हो, ऐसी सोच को सकारात्मक सोच समझते हैं। या‌ फिर "हर कार्य में सफलता(Success) मिलेगी और, कोई भी परेशानी नहीं होगी और सब कुछ ठीक ही रहेगा"- इस सोच को सकारात्मक सोच समझते हैं। या फिर "व्यक्ति पर विश्वास रखने   से बुरा व्यक्ति भी सुधर सकता है, या चिजे आसान तरीके से हो जाएगी"- यह सोच को सकारात्मक सोच समझते हैं। या फिर हर वक्त अच्छा सोचने को ज्यादातर लोग सकारात्मक सोच कहते हैं।

लेकिन दोस्तों हम इसके बारे में जो कुछ बताने वाले हैं वह बहुत मनोमंथन (High thinking) करने के बाद बता रहे हैं।


कोई भी चीज जाननी है तो सबसे पहले क्या सच (Truth) है उनका पता लगाना चाहिए। "मेरी बात हमेशा सही ही होती है" (I am always right) इस भ्रम से हमें बाहर निकलना पड़ेगा। धर्म,जाति और अपनेपन को दूर रखकर सच क्या है उनकी जांच-पड़ताल करनी चाहिए।

  • दोस्तों ज्यादातर लोग जिन्हें सकारात्मक सोच कहते हैं उन में उपर बताए गए विचार शामिल हैं। उनमें दोस्तों अगर बात करें हकार और नकार की तो, 



यह विचार हमारी भाषा अभिव्यक्ति में रुकावटें पैदा करता है, और खुलकर बात करने में दिक्कतें आती है। क्या हमारी सोच में भी इस(या किसी भी) तरह का फिल्टर (filter) रखना जरूरी है? हम आपको बता दें कि यह कोई सकारात्मक सोच नहीं है, और यह हमारे जीवन में जरुरी नहीं है। हमे हर तरह कि उपयोगी बातें सोचनी चाहिए।


  • और दोस्तों बात करते हैं उस सोच कि जिसमें लोग मानते हैं कि- "हमें हमेशा अच्छे ही विचार करने चाहिए,हमे हमेशा सफलता हासिल होगी और कोई मुश्किले नहीं आएगी।"


तो दोस्तों, अगर आप भी यह सोचते हैं तो हम आपको बता दें कि हमें अच्छे विचार जरूर करना चाहिए लेकिन दूसरे लोग हमारा किस तरह बुरा कर सकते हैं उसके बारे में भी सोचना चाहिए (सचेत रहना चाहिए)। हालांकि "ईर्श्या (दूसरे का अच्छा देखकर उनको बुरा लगना), सिर्फ अपना भला सोचना (Selfishness), दूसरे को मारने में लगे रहना या सोचना" ऐसी बातें बुरी कही जाती है। "सदा अच्छा ही सोचना" इसका मतलब यह नहीं है कि हमें हमारे बुरे वक्त या विफलताओं के बारे में ना सोचें। और सिर्फ एसा सोचने से ही हमको सफलता नहीं मिल जाती, यह तो "पत्ते का महल" बनाने जैसी बात हो गई। (शायद आपको मालूम ही होगा कि थोड़ी सी हवा लगने पर भी, पत्ते का महल गिर पड़ता है!) ऐसी सोच से हम वास्तविकता (Reality) से दूर रहते हैं। हमे हमारे अतित (Past) में मिली सफलता, विफलता और बुरे वक्त का भी चिन्तन करके उसमें से सबक लेना चाहिए और सचेत रहना चाहिए।


  • कुछ लोग कहते हैं कि- " सब कुछ ठीक ही होगा और कोई परेशानी भी नहीं होगी- एसा मानने से आत्मविश्वास (Confidence) बढता है"



तो दोस्तों हम बता दें कि एसे विचारों से आत्मविश्वास नहीं बढ जाता, और उल्टा , सही सोचने का ओर निर्णय लेने का समय भी बिगड़ जाता है। और हां, कोई भी मुश्किल सिर्फ आत्मविश्वास से दूर नहीं होती। उस मुश्किल का जो समाधान है, सिर्फ उस से ही वह मुश्किल दूर कि जा सकती है।


  • कुछ लोग मानते हैं कि "विश्वास (Believes) रखने से(व्यक्ति पर या काम में) चिजे आसान हो जाती है, और हमें हमारे सहकर्मी पर भरोसा रखके कार्य करना चाहिए।"

तो दोस्तों हम बता दें कि किसी पर भी विश्वास रखना उचित बात नहीं होगी। और "विश्वास रखने से चिजे आसन हो जाती हैं" यह बिल्कुल ग़लत है। सिर्फ विश्वास रखने से चिजे आसान नहीं हो जाती। और ,हमे कोई भी व्यक्ति धोखा दे सकता है, इसलिए हमे हमारी सावधानी में रहना चाहिए और अनदेखा-अनजाना  विश्वास रखना नहीं चाहिए।


  • ओर दोस्तों अब बात कर लेते हैं उस उदाहरण (Example) की जीसका उपयोग लोग सकारात्मक और नकारात्मक सोच को समझाने में करते हैं।
  " 50% Water (पानी) and 50% Air (हवा) से भरा हुआ ग्लास (Glass) को -"सकारात्मक  सोच वाले (Optimist) आधा भरा हुआ बताते हैं", और "नकारात्मक (Pessimist) सोच वाले आधा खाली बताते हैं"- इस मान्यता में मानते हैं। 

अगर आप भी इस मान्यता को सच मानते हैं तो आपको भी सच को समझना बेहद जरूरी होगा।


अगर मान लो आप को पानी की जरूरत नहीं है तो ऐसी स्थिति में आप का आधा भरा हुआ ग्लास की मान्यता क्या गलत नहीं हो जाती? दरअसल एसे उदाहरण से सकारात्मक सोच वाले ओर नकारात्मक सोच वाले लोगों को तय नहीं किया जा सकता।


  • क्या दूसरे का बखान करने से उनके मनोबल (self- confidence) को बढ़ावा मिलता है?

नहीं दोस्तों। बखान करने से व्यक्ति के मनोबल (Confidence) को बढ़ाया नहीं जा सकता। मनोबल तो, व्यक्तिने "कैसा कार्य किया है, या कार्य करने में कितनी सक्षमता (Ability) है" उन पर आधारित है। बखान करने से उस व्यक्ति को आनंद (Happiness) जरूर मिलता है, लेकिन दोस्तों बखान कि वजह से शायद वह व्यक्ति में घमंड आ सकता है या फिर हो सकता है कि पहले जितना शायद वह कार्य में प्रदर्शन न कर पाए, क्युकी शायद वह व्यक्ति उनको यह समझने लगेगा कि उनमें बहुत काबिलियत भरी पड़ी है। और इस वजह से वह शायद सचेत ना रह पाए।


  • क्या सामने वाले व्यक्ति को "अच्छी, मनमोहक और उनके मन को ठेस ना पहुंचाए" एसी बात करनी चाहिए?

सामने वाले व्यक्ति के लिए खास तरह के शब्दों को ढूंढने में दिमाग नहीं लगाना चाहिए, बोलने योग्य सभी शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। अगर हमें किसी से कोई खास बात बतानी है तो उसको सकारात्मक सोच नहीं, सत्य (Truth) बात बतानी होगी। भले ही वह अच्छी हो या बुरी हो। जिस से उस व्यक्ति के मन में कोई पर्दा ना रहे।(झूठ को छिपाना ना पड़े, और सच की जानकारी मिले) । "सत्य" खुद "सकारात्मक" है।


  • कुछ लोग बताते हैं कि " मैं यह नहीं कर पाउंगा, मुझसे यह नहीं होगा- इस सोच को नकारात्मक सोच" बताते हैं। 

इसका अगर विश्लेषण करें तो, यह कोई नकारात्मक सोच नहीं है। अगर कोई व्यक्ति पुरी तरह उनसे वाकेफ है कि, वह वो कार्य नहीं कर सकता, तो उनकी बात बिल्कुल सही है। उसको एसा करने में समय नहीं बिगाड़ना चाहिए। अगर उनमें काबिलियत और सक्षमता है परन्तु (but) उनको यह बात मालूम नहीं, और वह बोल रहा है कि-"मैं वो कार्य नहीं कर सकता।" ,तो यह भी कोई नकारात्मक बात नहीं है। दरअसल उसके अंदर जिज्ञासा और साहस कि कमी है। उनके अंदर ना कर पाने का डर लाजमी है, क्योंकि उसने आगे ऐसा कार्य नहीं किया होगा। लेकिन जिज्ञासा का ना होना एक निम्न ज्ञान (Low knowledge) कि निशानी है। उनको पता लगाना चाहिए कि वह काबिल हैं या नहीं, और बिना समय गंवाए साहस करना चाहिए।


अगर हम आपको सकारात्मक सोच (Positive thinking) और नकारात्मक सोच (Negative thinking) के बारे में बताएं तो आप जरूर चोंक जाएंगे।


सकारात्मक सोच और नकारात्मक सोच के बारे में हमारी राय और सच क्या है?


हमारी शोध के अनुसार (मुताबिक) सकारात्मक सोच (Positive thinking) और नकारात्मक सोच (Negative thinking) कुछ नहीं होता। और सच (हकीकत- Truth) के अलावा कोई अलग सोच में मानना सही नहीं है। दरअसल शब्दो के अनुसार सत्य की समज और जगत्कल्याण (विश्व कल्याण) की सोच सर्व श्रेष्ठ है और वह ही पुरी तरीके से सकारात्मक है। तो दोस्तो, सच को समझने के अलावा दूसरी किसी भी सोच (Filter of thoughts) की जरूरत हमें नहीं है।


कृपया आप अकेले पुरी तरह से इस मुद्दे (Topic) पर चिंतन करे और किसी की बातें पढ़कर या सुनकर उनको सही मानने की गलती मत करें। और दोस्तों इस मुद्दे पर मनोचिन्तन (Self-thinking) करने के बाद आपकी क्या राय है वह हमे ई-मेल या कमेंट (Comments) करके जरूर बताएं।

Please note:- इस लेख को पुरी तरह समझ के ही आप इसका पालन करे। हमारा उद्देश्य किसी भी व्यक्ति कि भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है। हमारा उद्देश्य हर व्यक्ति को हकीकत (सच्चाई- Truth) से वाकेफ कराना है।

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